1. About Rajput



 राजपूत (संस्कृत के राजा-पत्री, "राजा का बेटा") पश्चिमी, मध्य, उत्तरी भारत और पाकिस्तान के कुछ हिस्सों के पितृसत्ताय परिवारों में से एक का सदस्य है। वे उत्तरी भारत के शासक हिंदू योद्धा वर्ग के वंशज होने का दावा करते हैं 6 वीं से 12 वीं शताब्दियों के दौरान राजपूतों की प्रमुखता बढ़ी 20 वीं सदी तक, राजपूतों ने राजस्थान और सूरत के रियासतों के "भारी बहुमत" पर शासन किया था, जहां सबसे ज्यादा रियासतों के राज्य पाए गए थे। राजपूत (राजपुत्र) हिंदु क्षत्रिय वर्ण का एक उप-समूह है। उनके पास एक हिन्दू जाति (हिंदू समाज व्यवस्था के भीतर एक अंतर्जाल समूह) है। राजपूतों का शाब्दिक रूप से पुत्र-राजा हैं इन्हें 36 प्रमुख परिवारों में बांटा गया है, जिनमें से कई नाम जयसिम्हा के कुमारपाल चेतना और चन्द्रदाई के पृथ्वीराज रासो सहित कई ग्रंथों में दर्ज हैं। राजपूत उत्तर भारत का एक क्षत्रिय कुल माना जाता है।जो कि राजपुत्र का अपभ्रंश है। राजस्थान को ब्रिटिशकाल मे राजपूताना भी कहा गया है। पुराने समय में आर्य जाति में केवल चार वर्णों की व्यवस्था थी। राजपूत काल में प्राचीन वर्ण व्यवस्था समाप्त हो गयी थी तथा वर्ण के स्थान पर कई जातियाँ व उप जातियाँ बन गईं थीं। कवि चंदबरदाई के कथनानुसार राजपूतों की 36 जातियाँ थी। उस समय में क्षत्रिय वर्ण के अंतर्गत सूर्यवंश और चंद्रवंश के राजघरानों का बहुत विस्तार हुआ। राजपूतों में मेवाड़ के महाराणा प्रताप और पृथ्वीराज चौहान का नाम सबसे ऊंचा है।


  राजपूतों की उत्पत्ति

 हर्षवर्धन के उपरान्त भारत मे कोई भी ऐसा शक्तिशाली राजा नहीं हुआ जिसने भारत के बृहद भाग पर एकछत्र राज्य किया हो। इस युग मे भारत अनेक छोटे बड़े राज्यों में विभाजित हो गया जो आपस मे लड़ते रहते थे। इनके राजा राजपूत कहलाते थे तथा सातवीं से बारहवीं शताब्दी के इस युग को राजपूत युग कहा गया है।
राजपूतों की उत्पत्ति के संबंध मे इतिहास में दो मत प्रचलित हैं। कर्नल टोड व स्मिथ आदि के अनुसार राजपूत वह विदेशी जातियाँ है जिन्होंने भारत पर आक्रमण किया था। उच्च श्रेणी के विदेशी राजपूत कहलाए व अपेक्षाकृत निम्न कोटि के विदेशी आक्रमणकारियों से गुर्जर जातियाँ बनी। चंदबरदाई लिखते हैं कि परशुराम द्वारा क्षत्रियों के सम्पूर्ण विनाश के बाद ब्राह्मणों ने माउंट आबू पर यज्ञ किया व यज्ञ कि अग्नि से चौहान, परमार, प्रतिहार व सोलंकी राजपूत वंश उत्पन्न हुये। इसे इतिहासकार विदेशियों के हिन्दू समाज में विलय हेतु यज्ञ द्वारा शुद्धिकरण की पारंपरिक घटना के रूप मे देखते हैं। दूसरी ओर गौरीशंकर हीराचंद ओझा आदि विद्वानों के अनुसार राजपूत विदेशी नहीं है अपितु प्राचीन क्षत्रियों की ही संतान हैं। राजपूत युग कि वीरता व परक्रम का भारतीय इतिहास मे अद्वितीय स्थान है।



  राजपूत ख्याति

 राजपूत भारतीय उपमहाद्वीप (भारत, पाकिस्तान, बाँग्लादेश और नेपाल) की बहुत ही प्रभावशाली जाति है, जो शासन और सत्ता के सदैव निकट रही है। अपनी युद्ध-कुशलता और शासन-क्षमता के कारण राजपूतों ने पर्याप्त ख्याति अर्जित की। 15 अगस्त 1947 को स्वतन्त्र हुए भारत की 600 रियासतों में से लगभग 400 रियासतों पर राजपूत राजाओं का शासन था। भारत और पाकिस्तान, जिसे 15 अगस्त 1947 के पूर्व हिन्दुस्तान के नाम से ही जाना जाता था