महाराणा प्रताप की जीवनी और इतिहास

                   Maharana Pratap History in Hindi

                                         महाराणा प्रताप की जीवनी और इतिहास 



MAHARANA  PRATAP
Maharana Pratap महाराणा प्रताप मेवाड़ के शाषक और एक वीर योद्धा थे जिन्होंने कभी अकबर की अधीनता स्वीकार नही की | उनके जन्म दिवस “महाराणा प्रताप जयंती ” हो हर वर्ष जयेष्ट शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन मनाया जाता है | महाराणा प्रताप उदयपुर के संस्थापक उदय सिंह II और महारानी जयवंता बाई के जयेष्ट पुत्र थे | उनका जन्म सिसोदिया कुल में हुआ था | महाराणा प्रताप जीवनपर्यन्त मुगलों से लड़ते रहे और कभी हार नही मानी |युवाओं और राजपूतो के लिए महाराणा प्रताप अपनी वीरता और कुशलता के लिए प्रेरणादायक योद्धा है | आइये आज हम उनकी सम्पूर्ण जीवन की कहानी आपको बताते है |

महाराणा प्रताप का प्रारंभिक जीवन Early Life of Maharana Pratap



महाराणा प्रताप Maharana Pratap का जन्म 9 मई 1540 को राजस्थान के कुम्भलगढ़ में हुआ था | उनके पिता का नाम महाराणा उदय सिंह द्वितीय और माता का नाम रानी जीवंत कँवर [जयवंता बाई ] था | महाराणा उदय सिंह द्वितीय मेवाड़ के शाषक थे और उनकी राजधानी चित्तोड़ थी | महाराणा प्रताप Maharana Pratap उनके पच्चीस भाइयो में सबसे बड़े थे इसलिए उनको मेवाड़ का उत्तराधिकारी बनाया गया | वो सिसोदिया राजवंश के 54वे शाषक कहलाते है |
महाराणा प्रताप को बचपन में ही ढाल तलवार चलाने का प्रशिक्षण दिया जाने लगा क्योंकि उनके पिता उन्हें अपनी तरह कुशल योद्धा बनाना चाहते थे | बालक प्रताप ने कम उम्र में ही अपने अदम्य साहस का परिचय दे दिया था | जब वो बच्चो के साथ खेलने निकलते तो बात बात में दल का गठन कर लेते थे | दल के सभी बच्चो के साथ साथ वो ढाल तलवार का अभ्यास भी करते थे जिससे वो हथियार चलाने में पारंगत हो गये थे | धीरे धीरे समय बीतता गया | दिन महीनों में और महीने सालो में परिवर्तित होते गये | इसी बीच प्रताप अस्त्र श्श्त्र चलाने में निपुण हो गये और उनका आत्मविश्वास देखकर उदय सिंह फुले नही समाते थे |
महाराणा प्रताप के काl में दिल्ली पर अकबर का शाषन था और अकबर की निति हिन्दू राजाओ की शक्ति का उपयोग कर दुसरे हिन्दू राजा को अपने नियन्त्रण में लेना था | 1567 में जब राजकुमार प्रताप को उत्तराधिकारी बनाया गया उस वक़्त उनकी उम्र केवल 27 वर्ष थी और मुगल सेनाओ ने चित्तोड़ को चारो और से घेर लिया था | उस वक़्त महाराणा उदय सिंह मुगलों से भिड़ने के बजाय चित्तोड़ छोडकर परिवार सहित गोगुन्दा चले गये| वयस्क प्रताप सिंह फिर से चित्तोड़ जाकर मुगलों से सामना करना चाहते थे लेकिन उनके परिवार ने चित्तोड़ जाने से मना कर दिया |

सिंहासन के लिए संघर्ष और महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक Conflict for Throne & Coronation of Maharana Pratap


गोगुन्दा में रहते हुए उदय सिंह और उसके विश्वासपात्रो ने मेवाड़ की अस्थायी सरकार बना ली थी | 1572 में महाराणा उदय सिंह अपने पुत्र प्रताप को महाराणा का ख़िताब देकर मृत्यु को प्राप्त हो गये | वैसे महाराणा उदय सिंह  अपने अंतिम समय में अपनी प्रिय पत्नी रानी भटियानी के प्रभाव में आकर उनके पुत्र जगमाल को राजगद्दी पर बिठाना चाहते थे | महाराणा उदय सिंह के म्रत्यु के बाद जब उनके शव को श्मशान तक ले जाया जा रहा था तब प्रताप भी उस शवयात्रा में शामिल हुए थे जबकि परम्परा के अनुसार राजतिलक के वक़्त  राजकुमार प्रताप को पिता के शव के साथ जाने की अनुमति नहीं होती थी बल्कि राजतिलक की तैयारी में लगना पड़ता था | प्रताप ने राजपरिवार की इस परिपाटी को तोडा था और इसके बाद ये परम्परा कभी नहीं निभायी गयी |
प्रताप Maharana Pratap ने अपने पिता की अंतिम इच्छा के अनुसार उसके सौतेले भाई जगमाल को राजा बनाने का निश्चय किया लेकिन मेवाड़ के विश्वासपात्र चुंडावत राजपूतो ने जगमाल के सिंहासन पर बैठने को विनाशकारी मानते हुए जगमाल को राजगद्दी छोड़ने को बाध्य किया | जगमाल सिंहासन को छोड़ने का इच्छुक नहीं था लेकिन उसने बदला लेने के लिए अजमेर जाकर अकबर की सेना में शामिल हो गया और उसके बदले उसको जहाजपुर की जागीर मिल गयी | इस दौरान राजकुमार प्रताप को मेवाड़ के 54वे शाषक के साथ महाराणा का ख़िताब मिला |
1572 में प्रताप सिंह मेवाड़ के महाराणा बन गये थे लेकिन वो पिछले पांच सालो से चित्तोड़ कभी नहीं गये | उनका जन्म स्थान और चित्तोड़  का किला महाराणा प्रताप को पुकार रहा था | महाराणा प्रताप Maharana Pratap को अपने पिता के चित्तोड़ को पुन: देख बिना मौत हो जाने का बहुत अफ़सोस था | अकबर ने चित्तोड़ पर तो कब्जा कर लिया था लेकिन मेवाड़ का राज अभी भी उससे दूर था | अकबर ने कई बार अपने हिंदुस्तान के जहापनाह बनने की चाह में कई दूतो को राणा प्रताप से संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए भेजा लेकिन हर बार राणा प्रताप ने शांति संधि करने की बात कही लेकिन मेवाड़ की प्रभुता उनके पास ही रहेगी |

महाराणा प्रताप का संधि प्रस्ताव ठुकराना और मान सिंह का अपमान Treaty Refuses By Maharana Pratap


1573 में अकबर ने छ राजनायको को भेजकर राणा प्रताप से समर्पण की बात कही लेकिन राणा प्रताप Maharana Pratap ने हर बार मना कर दिया | सबसे अंतिम बार अकबर ने उसके साले और सेनापति मान सिंह को राणा प्रताप के पास भेजा | महाराणा प्रताप मान सिंह को देखकर क्रोधित होकर बोले कि “एक राजपूत अपने राजपूत भाइयो को समर्पण की बात कह रहा है  ” और राजा मान सिंह को लज्जित कर वापस भेज दिया |अब अकबर को समझ में आ गया था कि महाराणा प्रताप Maharana Pratap कभी समर्पण नही करेंगे इसलिए उन्होंने अपनी सेना को मेवाड़ पर कुच करने के लिए तैयार किया |
1573 में संधि प्रस्तावों को ठुकराने के बाद अकबर ने मेवाड़ का बाहरी राज्यों से सम्पर्क तोड़ दिया और मेवाड़ के सहयोगी दलों अलग थलग कर दिया जिसमे से कुछ महाराणा प्रताप के मित्र और रिश्तेदार थे | अकबर ने चित्तोड़ के सभी लोगो को प्रताप की सहायता करने से मना कर दिया | अकबर ने राणा प्रताप Maharana Pratap के छोटे भाई कुंवर सागर सिंह को विजयी क्षेत्र पर राज करने के लिए नियुक्त किया लेकिन सागर ने अपनी मातृभूमि से कपट करने के बजाय मुगल दरबार में कटार से आत्महत्या कर ली | राणा प्रताप का छोटा भाई शक्ति सिंह मुगल सेना में था और अपने भाई को अकबर के विचारो से अवगत करवाया |

महाराणा प्रताप का जंगलो में निवास Maharana Pratap Life in Jungle


महाराणा प्रताप Maharana Pratap ने मुगलों से सामना करने के लिए अपनी सेना को सचेत कर दिया | प्रताप ने अपनी सेना को मेवाड़ की राजधानी कुम्भलगढ़ भेज दिया | उसने अपने सैनिको को अरावली की पहाडियों में चले जाने की आज्ञा दी और दुश्मन के लिए पीछे कोई सेना नही छोडी | महाराणा युद्ध उस पहाडी इलाके में लड़ना चाहते थे जिसके बारे में मेवाड़ सेना आदि थी लेकिन मुगल सेना को बिलकुल भी अनुभव नही था | अपने राजा कीबात मानते हुए उनकी सारी सेना पहाडियो की ओर कुच कर गयी | अरावली पहाडियों पर भील भी राणा प्रताप की सेना के साथ हो गये |
महाराणा प्रताप Maharana Pratap खुद जंगलो में रहे ताकि वो जान सके कि स्वंत्रतता और अधिकारों को पाने के लिए कितना दर्द सहना पड़ता है | उन्होंने पत्तल में भोजन किया , जमीन पर सोये और दाढी नही बनाई | दरिद्रता के दौर में वो  कच्ची झोपड़ियो में रहते थे जो मिटटी और बांस की बनी होती थी | मुगल सेना ने मेवाड़ को दिल्ली से सुरत तक चारो ओर से घेर लिया था | उनकी सेना के कुछ सैनिको को हल्दीघाटी के सारे मार्गो का अनुभव था तो उनके निर्देशनुसार उदयपुर में दाखिल होने का एकमात्र रास्ता उत्तर में था | अकबर की सेना सेनापति मानसिंह और कुछ कुशल मुगल लडाको के साथ मांडलगढ़ पहुच गयी और दुसरी तरफ महाराणा प्रताप Maharana Pratap की सेना में झालामान , डोडिया भील ,रामदास राठोड और हाकिम खा सुर जैसे शूरवीर थे | मुगल सेना के पास कई तोंपे और विशाल सेना  थी लेकिन प्रताप की सेना के पास केवल हिम्मत और साहसी जांबाजो की सेना के अलावा कुछ भी नही था |

हल्दीघाटी का युद्ध Battle Of Haldighati Between Maharana Pratap and Man Singh

1576 में 20000 राजपूतो और मुगल सेना के 80000 सैनिको के बीच हल्दीघाटी का युद्ध शुरू हो गया | उस समय मुगल सेना की कमान अकबर के सेनापति मान सिंह ने संभाली थी | महाराणा प्रताप Maharana Pratap की सेना मुगलों की सेना को खदेड़ रही थी | महाराणा प्रताप की सेना तो पराजित नही हुयी लेकिन महाराणा प्रताप स्वयं मुगल सैनिको से घिर गये थे | महाराणा प्रताप के बारे में कहा जाता है कि उनके भाले का वजन 80 किलो और कवच का वजन 72 किलो हुआ करता था  और इस तरह उनके भाले ,कवच , ढाल और तलवारों को मिलाकर कुल 200 किलो का वजन साथ लेकर युद्ध करते थे तो सोचो कि किस तरह वो इतना भार लेकर युद्ध करते थे |ऐसा कहा जाता है इस वक़्त राणा प्रताप के हमशक्ल भाई शक्ति सिंह ने प्रताप की मदद की | एक दुसरी दुर्घटना में महाराणा प्रताप Maharana Pratap का प्रिय और वफादार घोडा चेतक प्रताप की जान बचाते हुए वीरगति को प्राप्त हो गया 

युद्ध समाप्त हो गया था और इस युद्ध के बाद अकबर ने कई बार मेवाड़ को हथियाने की कोशिश की लेकिन हर बार पराजित हुआ | महाराणा प्रताप किसी तरह चित्तोड़ पर फिर से कब्ज़ा पाने की कोशिश में लगे हुए थे लेकिन मुगलों के लगातार आक्रमणों के चलते उनकी सेना काफी कमजोर हो गयी थी और उनके पास सेना को वहन करने के लिए पर्याप्त धन भी नही बचा | मुसीबत के उस समय में उनके एक मंत्री भामाशाह ने उनकी सारी सम्पति राणा प्रताप Maharana Pratap को सौप दी और वो धन इतना था कि 12 वर्ष तक 25000 सैनिको का भार उठा सके | महाराणा प्रताप अपने साम्राज्य के लोगो को देखकर काफी दुखी हुए और उनकी अकबर से लड़ने की ताकत क्षीण होती जा रही थी |

Letter of Prithviraj chauhan to Maharana Pratap पृथ्वीराज चौहान का पत्र और हृदय परिवर्तन


एक दुसरी घटना में उनको तब बहुत दुःख होता है जब उनके बच्चो के लिए बनी घास की रोटी को कुत्ता चुरा कर ले जाता है | इस घटना ने राणा प्रताप के  हृदय को झकझोर कर रख दिया |  अब उनको अपने मुगलों के सामने समर्पण ना करने पर संदेह हो रहा था कि उनका निर्णय सही था या गलत | विचारो के इन क्षणों में उन्होंने अकबर को एक पत्र लिखा जिसमे उन्होंने समर्पण करने की बात कही  | अकबर के इस पत्र को जब उसके दरबार के पृथ्वीराज चौहान ने पढ़ा तो अकबर ने सार्वजनिक आनन्द का आयोजन किया कि उसके बहादुर दुश्मन ने समर्पण की बात कही |
पृथ्वीराज चौहान मारवाड़ प्रान्त के बीकानेर राज्य के राजा राय सिंह का छोटा भाई था |  उसने मुगलों के आगे समर्पण कर उनके राजदरबार में सेवा देना शुरू कर दिया था | पृथ्वीराज चौहान खुद एक योद्धा और महान महाराणा प्रताप का प्रशंसक था | वह यह पढकर आश्चर्यचकित हो गया और राणा प्रताप के इस निर्णय पर दुखी हो गया | उसने अकबर को बताया कि राणा प्रताप के किसी शत्रु ने प्रताप की छवि को बदनाम करने के लिए जाली पत्र भेजा होग | पृथ्वीराज ने बताया कि वो राणा प्रताप को अच्छी तरह जानते है कि वो अपने जीवन मे कभी समर्पण नही करंगे |पृथ्वीराज ने अकबर से प्रताप Maharana Pratap को पत्र भेजने की इजाजत माँगी ताकि सत्यता का पता चल सके | पृथ्वीराज ने अपने पत्र में कुछ दोहे लिखकर प्रताप को भेजे जो आज भी पृथ्वीराज की देशभक्ति की मिसाल को बयान करते है
“हिन्दुओ की आस हिन्दुओ पर टिकी हुई है चाहे राणा इसे छोड़ दे |  अकबर हमारी इस दौड़ में एक बाधा है और वो सब कुछ खरीद सकता है लेकिन राणा उदय सिंह के बेटे को नही खरीद सकता | क्या सच्चा राजपूत चित्तोड़ फिर से विजयी कर  पायेगा |”
इस प्रसिद्ध पत्र ने प्रताप Maharana Pratap को अपना निर्णय बदलने पर मजबूर कर दिया और मुगलों के आगे समर्पण करने से मना कर दिया | 1587 में अकबर ने राणा प्रताप के इस जूनून के आगे घुटने टेक दिए और अपनी सेनाओ को पंजाब बुला लिया | प्रताप ने अपने जीवन के अंतिम दस वर्षो में शांति से राज किया और मेवाड़ के अधिकतर प्रान्तों को मुक्त किया | उन्होंने उदयपुर और कुम्भलगढ़ पर तो कब्ज़ा कर लिया लेकिन चित्तोड़ पर कब्ज़ा करने में असफल रहे | महाराणा प्रताप को हिन्दू समुदाय की किरण और जीवन कहा जाता था | प्रताप कला के सरक्षक थे और उन्होंने अपने शाषन में पदमावत चरिता और दूसरा अहदा कविताये लिखी थी |उभेश्वर महल , कमलनाथ महल और चावंड महल उनकी स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने है | उनकी ये इमारते घने जंगलो में सैन्य पद्दति से निर्मित है |

Maharana Pratap Family and Final Years महाराणा प्रताप का परिवार और अंतिम समय


महाराणा प्रताप Maharana Pratap की सबसे पहली और प्रिय रानी अजब्दे पंवार थी जिसने हर मुसीबत में उनका साथ दिया था लेकिन 30 वर्ष की उम्र में ही उनकी मृत्यु हो गयी | अजब्दे पंवार के आलावा उनकी सारी रानिया राजनितिक समझोतों की देन थी | महाराणा प्रताप की 11 रानिय , 17 पुत्र और 5 पुत्रिया थी | उनके पहले पुत्र अमर सिंह ने सिसोदिया वंश को आगे बढाया और राजगद्दी संभाली |
अब प्रताप के जीवन की किरने कमजोर होने लगी थी | उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दिनों में अपने पुत्र अमर सिंह को सिंहासन पर बिठाया | महाराणा प्रताप कभी चित्तोड़ वापस नहीं जा सके लेकिन वो उसे पान के लिए जीवनपर्यन्त प्रयास करते रहे | जनवरी 1597 को मेवाड़ के महान नायक राणा प्रताप Maharana Pratap शिकार के दौरान बुरी तरह घायल हो गये और उनकी 56 वर्ष की आयु में मौत हो गयी | उन्होंने म्रत्यु से पहले अमर सिंह को मुगलों के सामने कभी समर्पण ना करने का वचन लिया और चित्तोड़गढ़ पर फिर विजय प्राप्त करने को कहा |

ऐसा कहा  जाता है कि राना प्रताप की मौत पर अकबर खूब रोया था कि एक बहादुर वीर इस दुनिया से अलविदा हो गया | उनके शव को 29 जनवरी 1597 को चावंड लाया गया | इस तरह महाराणा प्रताप इतिहास के पन्नो में अपनी बहादुरी और जनप्रियता के लिए अमर हो गये | उनके जीवन पर आधरित सोनी टीवी पर एक धारावाहिक भी प्रसारित किया जाता है |

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